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हंस गान / प्रेम शर्मा
Kavita Kosh से
दीर्घ
दाग़
निदाघ
नाहिं बिरछ की छाँव
राम जी
अम्बर अगिन झरे !
घर से
निकसे
जीव-जहानी,
आग
धुआँ
आँसू की बानी,
बीहड़ यात्रा
अकथ कहानी,
जल बिनु मीन
पंख बिनु पाखी
कैसे अगम तरे,
राम जी
मानुष अलख मरे !
ढाई आखर
अँसुवा-अँसुवा
आहत लहुलुहान करेजवा,
मन के साँचे
कर्मणा बाँचे
हंसा पहुँचे
मानसरोवर
जहाँ हिमपात झरे,
राम जी
हर-हर गंग झरे !