भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हंस गेलैै परदेश हो / नंदकिशोर शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐंगना-ऐंगना कौआ बोलै, हंस गेलै परदेश हो
अवधपुरी मंे लागल आगी, राज करै लंकेश हो।

प्रेम प्रीत के सुखलै बारी मुँह पर हस्सी हाँथ कटारी
खेतबा बटलै क्यारी-क्यारी, रामचन्द्र पर रावण भारी
लक्ष्मण कानै छै ओलती में, राकस जीतै रेश हो
ऐंगना-ऐंगना कौआ बोलै, हंस गेलै परदेश हो।

चोर सिपाही मिलकेॅ गावै, नेताजी हुँकार लगावै
मुंहधुप्पा सरकारी चमचा, कोना में झुनझुना बजावै
परशासन भेल कुंभकर्ण अब, मंत्री जी कै ऐश हो
ऐंगना-ऐंगना कौआ बोलै, हंस गेलै परदेश हो।

सत के नैया डगमग डोलै, रूपा पर न्यायालय बोलै
भ्रष्टाचार डसलकै सबकै, सरपट चुप कोय मुँह नै खोलै
हनुमान नै छै धाजा पर, चलै दसानन हैंस हो
ऐंगना-ऐंगना कौआ बोलै, हंस गेलै परदेश हो।

थिरनेट्टा, मसकेटवा, रायफल, जब सैं एस.एल.आर भेलै हो
प्रोफेसर, इन्जिनीयर, डगडर सब डिग्री बेकार भेलै हो
रंगदारी के हबा बहल छै, डेग-डेग पर ठेस हो
ऐंगना-ऐंगना कौआ बोलै, हंस गेलै परदेश हो।

डागडर होस्पीटल नै मिलतोॅ, स्कुल थरिया खिचड़ी भर छै
मुलुर-मुलुर ताकै छै मंगला, खोजै विभीषण राम किधर छै
रोज खबर बस सियाहरण के अब की बचतै देश हो
ऐंगना-ऐंगना कौआ बोलै, हंस गेलै परदेश हो।