हंस बड़ा ही ज्ञानी है
जादूगर विज्ञानी है।
रहता है यह झीलों में
विचरण करता मिलों में,
घर-आंगन बाहर-भीतर
बस पानी ही पानी है।
झुंडों में यह रहता है,
'आंग-आंग' कुछ कहता है,
जरा ध्यान से सुनो इसे
बोली बड़ी सुहानी है।
पंख कत्थई भूरा है,
चुस्त-चतुर यह पूरा है,
ढूँढे सांझ उतरते ही
अपना दाना–पानी है।
नीर-क्षीर का ज्ञान इसे,
मगर नहीं अभिमान इसे,
दूध देख बतला देता
उसमें कितना पानी है।