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हंस हेलै छै पानी में / अनिल कुमार झा
Kavita Kosh से
कत्ते बढ़िया कलकल करने हंस खेलै छै पानी में
दूर दूर तर दौड़ले-दौड़ले हंस हेलै छै पानी में।
अपना में रमलोॅ जोड़ा छै दुनियाँ से बेख़बर वहाँ
गोल गोल रं लहर उठाय के शांत मोॅन हर पहर वहाँ
घुमी फिरी के कू-कू कहने हंस करै छै पानी में
कत्ते बढ़िया कलकल करने हंस खेलै छै पानी में।
बीच पोखरी कमल छै खिललोॅ, मनोॅ केॅ ललचाय छै
आरू किनारी बैठलोॅ बगुला कन्नोॅ दिस नै जाय छै,
कखनू कखनू मारी डुबकी हंस मिलै छै पानी में
कत्ते बढ़िया कलकल करने हंस खेलै छै पानी में।
हुने किनारी बैठलोॅ बुतरू वंशी लेने गुमसुम छै
शरद हवा के कसमस सिहरन सहने बैठे की धुन छै,
साँझ किरण के लाल रंग के हंस धरै छै पानी में
कत्ते बढ़िया कलकल करने हंस खेलै छै पानी में।