हईं हम त अइसन डहरिया के राही / जगन्नाथ
हईं हम त अइसन डहरिया के राही।
मिल डेगे-डेगे प हमके तबाही।।
रहल दिन-रात जे डहरिया में साथे,
लुटाइलि उमिरिया भरल ओही हाथे ;
चदरिया रहल साफ हरमेस मन के,
मिल दाग बाकिर कहीं कतना माथे।
रहल हाल ईहे उमिरिया के हरदम,
कि जेही मिल ऊ करत गइल घाही।
मिल डेगे-डेगे प हमके तबाही।।
कहारन का असरा प जिनगी के डोली,
बढ़त जा रहलि बा सुनत सभ ठिठोली ;
कहे के त बाटे सभे मीत आपन,
सुनल केहू बाकिर ना हियरा के बोली।
भेंटाइल ना सिसिकी के ददखाह केहू,
हँसी के भले मिललें दाही-प-दाही।
मिल डेगे-डेगे प हमके तबाही।।
बचल पास अपना बा बस ईहे थाती
जिनिगिया के दियरा, दरदिया के बाती ;
लुटवलीं बहुत बेर अँसुअन के मोती,
छुटलि नाहीं तबहूँ दरदिया से छाती ;
लेलस लूट सब कुछ तबो ई बेदरदी,
जमाना अबहुओं लगवले बा टाही।
मिल डेगे-डेगे प हमके तबाही।।
हईं हम त अइसन डहरिया के राही।
मिल डेगे-डेगे प हमके तबाही।।