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हक़ीक़त / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
हथेली पर खिंची
टूटी जीवन-रेखा से
क्या डरते हो
साप्ताहिक भविष्य-फल में की गई
अनिष्ट की भविष्यवाणियों से
क्या डरते हो
कुंडली में आ बैठे
शनि की साढ़े-साती से
क्या डरते हो
यदि डरना है तो
अपने 'मैं' से डरो
अपने बेलगाम शब्दों से डरो
अपने मन के कोढ़ से डरो
अपने भीतर हो गई
हर छोटी-सी मौत से डरो
क्योंकि
उँगलियों में
'नीलम' और 'मूनस्टोन' की
अँगूठियाँ पहन कर
तुम इनसे नहीं बच पाओगे