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हक़ पर चलकर दुःख होता है / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
हक़ पर चलकर दुःख होता है
सच में अक्सर दुःख होता है
जंगल की तहज़ीब देखकर
घर के अन्दर दुःख होता है
ग़ैरत जो खा जाये ऐसे
सुख से बेहतर दुःख होता है
सब जायज़ है जहाँ वहाँ भी
हद के बाहर दुःख होता है
कितना दुःखद है सुख से मेरे
भाई के घर दुःख होता है
दिल को हम दें लाख तसल्ली
मगर हार पर दुःख होता है
कौन ख़ुशी से गया वहाँ तक
दूर जहाँ हर दुःख होता है