हकीकत / अब तुम्हारे हवाले है वतन साथियों
रचनाकार: कैफी आज़मी |
कर चले हम फ़िदा, जान-ओ-तन साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
सांस थमती गई, नब्ज जमती गई,
फिर भी बढ़ते कदम को ना रुकने दिया
कट गये सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते मरते रहा बाँकपन साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
जिन्दा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनो को रुसवा करे
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
बाँध लो अपने सर पर कफ़न साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
राह कुर्बानियों की ना वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नये काफ़िले
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है
जिन्दगी मौत से मिल रही है गले
आज धरती बनी है दुल्हन साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
खेंच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
इस तरफ आने पाये ना रावण कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छूने पाये ना सीता का दामन कोई
राम भी तुम तुम्हीं लक्ष्मण साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...