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हज़ार ख़्वाब लिए जी रही हैं सब आँखें / इन्दिरा वर्मा
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हज़ार ख़्वाब लिए जी रही हैं सब आँखें
तेरे बिना हैं मगर मेरी बे-सबब आँखें
चमकते चाँद सितारो गवाह तुम रहना
लगी रही हैं फ़लक से तमाम शब आँखें
तुम्हारे सामने रहती हैं नीम-वा हम-दम
हया-शनास बहुत हैं ये बा-अदब आँखें
बस एक दीद की हसरत सजा के पलकों पर
मिलेंगी तुम से ख़यालों में बे-तलब आँखें
सिला दिया है मोहब्बत का तुम ने ये कैसा
मुसर्रतों में भी रोने लगी हैं अब आँखें