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हज़ार दरवेश / संजय कुमार शांडिल्य

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वह अपने लम्बे बालों को छाँट लेती है
पॄथ्वी से दूरी बना लेने का यह उसका तरीका है।
उसे अपने रोजनामचे में शामिल करना है
आकाश के सितारों से मुठभेड़ की कथाएँ
वह इस ब्रह्माण्ड के बाहर कहीं रहेगी
अपना घर बनाकर।

उसकी दीवारों पर लिखेगी अपनी मर्जी की
प्रेम-कविताएँ
और ऐसे पढ़ेगी जैसे वे पॄथ्वी पर पढ़ी जा रही हों।
मुश्किल है प्रेम को कविताओं की तरह लिखना
चाहे हों दुनिया में जितने भी छापेख़ाने
बिना प्रेम करने की आज़ादी के स्त्रियाँ कैसे
लिख सकती हैं प्रेम-कविताएँ
क्यों जन्मों की उदासीनता तैरती है उसकी
आँखों में ।
ऐक्वेरियम की मछलियों की आँखें देखी है तुमने
पढ़ी हैं अपने समय की स्त्रियों की लिखी
डायरियाँ
जिसे उन्होंने दास्तानें पहने हुए हाथों से लिखा
कभी नहीं पढ़े जाने के लिए चाँद की रोशनी में
प्रेम-कविताएँ नहीं लिखी गई हैं उनमें
प्रेम रचा गया है उनमें ब्रह्मा के पॄथ्वी की तरह ।

इन अक्षरों को पढ़ना दुनिया के सबसे बङे साहस से गुज़रना है
कविताओं में प्रेम एक फुनगी है विरल और कमज़ोर एक विशाल अश्वत्थ की
बहुत गहरे आईसबर्ग की नोक है प्रेम-कविताओं में
तुम नहीं जानते हो और कोई नहीं जानता होगा
प्रेम की सबसे बङी क्रान्तियाँ अभी अँधेरे में हैं
दमन इतना भयानक कि हस्तलिखित महान
डायरियाँ हज़ारों सालों की ख़ुदाई में नहीं मिली हैं
कभी जिन्हें दास्ताने पहने हाथों ने लिखा था
इसी पॄथ्वी पर चाँद की रोशनी में।

वह कितनी पुरानी किन्तु विश्वसनीय दिखाई पड़ती है यह सब बताते हुए
एकाध अक्षर चमकते हैं कभी-कभी उन राखों में
जो जलाए गए उन स्त्री देहों के साथ
दुनिया के हर देश में जहाँ प्रेम लिखना धर्म विरुद्ध था, प्रेम करना भी
और प्रेम माँगना सबसे ज़्यादा।

वह कहती है कि उसने पढ़ा है जीवन की यातनाओं के स्वीकार से भरे एक अपवाद स्वरूप क्षणांश में
दुनिया की सबसे पुरानी औरत की मुस्कुराहट
ये अक्षर कोयले थे न जाने कितने हज़ार वर्ष पूर्व हीरे की तरह चमकते हैं आज भी उसकी
आँखों में
आज की रात भी दुनिया के सबसे प्राचीन अँधेरे में।

उसने कहा तुम इस क्षण में महानतम हो
पॄथ्वी पर
लो औरत के प्रेम की वे कविताएँ पढ़ो
जिसमें सबसे ऊँचे वॄक्षों की सबसे गहरी जड़ों का अँधेरा है
तुम इन साँवले उजालों को छू लो और उन हज़ार दरवेशों में हो जाओ
जो धरती के बनने से लेकर आज तक हुए हैं ।