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हज़ार दर्द मिला तुझ से दिल लगाने में / रंजना वर्मा

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हज़ार दर्द मिला तुझ से दिल लगाने में।
ज़माना छोड़ दिया आशिकी निभाने में॥

गिरा दे और बिजलियाँ तू बेवफ़ाई की
जगह अभी है बची दिल के आशियाने में॥

जमाने में न उसे चाहता कहीं कोई
छुपा है दर्द यहाँ मेरे इस ठिकाने में॥

कभी तो आ के कोई हाले दिल मेरा पूछे
है दिल भी हार गया यूँ ही मुस्कुराने में॥

किया हज़ार दफ़ा तोड़ भी दिया वादा
उमर गुज़र रही है तुझको आज़माने में॥

न कोई समझा इसे और न इज़्ज़त बख्शी
है शीशा टूट गया देखने दिखाने में॥

है ज़िन्दगी कि हो जैसे कि बाँसुरी कोई
उमर है बीत रही सात सुर सजाने में॥