हज़ार वर्षों में-1 / रामकृष्ण पांडेय
इन हज़ार वर्षों में
और भी विनाशकारी
होते चले गए हैं युद्ध
और भी भयानक होती चली गई हैं
बीमारियाँ
और भी बढ़ती चली गई है
चौहद्दी भूख की
इन हज़ार वर्षों में
और भी वंचित कर दिया है हमें
युद्ध, भूख और बीमारियों ने
मनुष्यता से
हम कुछ और मनुष्य होकर
नहीं जा रहे हैं अगली सहस्राब्दी की ओर
हम तो कुछ और घृणा
कुछ और द्वेष
कुछ और कलुष का पाथेय लेकर
प्रस्थान कर रहे हैं
अगली सहस्राब्दी की ओर
हज़ारों साल से
अहिंसा का मंत्र पढ़ते हुए
हम लड़ते रहे हैं युद्ध
अपनी घृणा को
हथियारों क रूप देते रहे हैं
प्रेम के संदेश के साथ
कलुष की स्याही से ही
लिखा है हमने अपना इतिहास
हम आज भी जीना चाहते हैं
अपनी आदिम प्रवृत्तियों को ही
सीने से लगाए हुए
हम इसी रूप में बढ़ना चाहते हैं
अगली सहस्राब्दी की ओर