भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हजारों आफतें हैं मेरा सर है / 'हफ़ीज़' बनारसी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हजारों आफतें हैं मेरा सर है
मैं जिंदा हूँ ये मेरा ही जिगर है

बहुत आसान राहे-पुर खतर है
तुम्हारी याद जब से हमसफ़र है
 
कहाँ थे मेरे नग्मे इतने शीरीं
तेरे दर्द-ए-मुहब्बत का असर है

जो पिघला दे दिले-कोहसार को भी
मुहब्बत वह नवा-ए-कारगर है

ज़माने भर के ग़म में रोने वाले
तुझे कुछ अपने घर की भी खबर है

न पूछो आज सजदों की लताफ़त
मेरा सर है और उनका संगे-दर है

मिले फुर्सत तो सुन लेना किसी दिन
मेरा किस्सा निहायत मुख़्तसर है