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हजार बार मनाही हुई कि मत जाओ / कैलाश झा ‘किंकर’

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हजार बार मनाही हुई कि मत जाओ
हुई ख़ता जो तुम्हारी उसे न दुहराओ।

मगर कभी भी नहीं माँ-पिता कि सुनते हो
दुखा-दुखा के दिलों को न आज दुख पाओ।

खटास बढ़ती गयी है खटास में रिश्ते
बनावटी-सी हँसी से न आज मुस्काओ।

यही समझ लो कि दुनिया में तुम अकेले हो
यकीन है तो सदा बाजुओं से सुख लाओ।

न बे-वजह की लड़ाई का प्रश्न उठ पाए
किसी की बात पर इतना न आज घबराओ।