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हटलो ने मानय त्रिपुरारी हो विपति बड़ भारी / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हटलो ने मानय त्रिपुरारी हो विपति बड़ भारी
खूजल बसहाके डोरी कोना पकड़ब
चड़ि गेल फूल-फूलबारी, हो विपति बड़ भारी
अंगने-अंगने सखि सब उलहन दै छथि
कतेक सहब अति गारी, हो विपति बड़ भारी
भनहि विद्यापति सुनू हे गौरी दाई
इहो छथि त्रिशुलधारी, हो विपत्ति बड़ भारी
जय शिवशंकर भोले दानी, क्षमा मंगै छी तोरे सँ
अपराधी पातक हम भारी, तैं कनै छी भोरे सँ
तोहर शरण तेजि ककरा शरणमे जायब हे शंकरदानी
दयावान दाता तोरा सन, के त्रिलोक मे नहि जानी
जाधरि नहि ताकब बमभोले, हम चिचिआएब जोरे सँ
अपना लय फक्कड़ भंगिया, किन्तु तोहर अनुचर भरले
कोसे-कोसे नामी तूँ शंकर, सेवक पर सदिखन ढ़रले
जनम भेल माया तृष्णा मे, से तृष्णा नहि पूर भेलै
कामना केर लहरि मे बाबा, जीवन एहिना दूरि भेलै
हे दुखमोचन पार लगाबऽ, हम दुखिया छी ओरे सँ
पूजन विधि नहि जानी हम हे यैह जपि जपि कऽ ध्यान धरी
कर्म चक्रकेर जीवन भरि हम, पेटे लेल ओरियान करी
हे ज्योतीश्वर पार लगाबह, हम दुखिया छी ओरे सँ