भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हड़ताल / पूजानन्द नेमा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज़ादी के मुखौटे से
झाँक रही है
आज मोनोक्रेसी
हड़ताल और नारों को
अब कौन सुनेगा?

जन-कीटों पर गैस बरसाकर
और संगीनें तानकर
अकड़कर जीते हैं
कीड़ों के प्रतिनिधि !