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हड़प जिसने ज़मीनें ली, सगा है / कैलाश झा 'किंकर'
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हड़प जिसने ज़मीनें ली, सगा है
बचा मेरे लिए क्या रास्ता है।
सुकूं के वास्ते सब सह रहा हूँ
वो करता जो भी सब मुझको पता है।
मगर नुक़सान उसका कर न सकता
सुखी दुश्मन भी हो तो फायदा है।
नहीं चलता है जादू भी सभी पर
मेरा दिल सख़्त पत्थर का बना है।
कभी नफ़रत किसी से क्या करूँगा
सभी के साथ चलने में मज़ा है।
मुहब्बत में बड़ी ताकत है "किंकर"
अदावत ज़िन्दगी की इक सज़ा है।