भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हड्डियाँ चबाने / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुन रे! बेईमान ज़माने !
मारूँ तुझको कितने झापड़
कितने ताने

दीन-दुखी के फीके-फीके
सूर्यमुखी-से नीके-नीके
चेहरे कर डाले चौखाने

होठों पर धर धार ब्लेड की
कुरसी करती बात ग्रेड की
आदम की हड्डियाँ चबाने

मारूँ तुझको कितने झापड़
                     कितने ताने
सुन रे! बेईमान ज़माने !