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हड्डियाँ चबाने / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
सुन रे! बेईमान ज़माने !
मारूँ तुझको कितने झापड़
कितने ताने
दीन-दुखी के फीके-फीके
सूर्यमुखी-से नीके-नीके
चेहरे कर डाले चौखाने
होठों पर धर धार ब्लेड की
कुरसी करती बात ग्रेड की
आदम की हड्डियाँ चबाने
मारूँ तुझको कितने झापड़
कितने ताने
सुन रे! बेईमान ज़माने !