हड्डी वार्ड में बच्चा / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
(मुदित की कल्पना)
यह जगह है स्कूल से काफ़ी बड़ी
कमरे भी बड़े-बड़े
हर क्लासरूम के ऊपर ‘वार्ड’ लिखा हुआ
ब्लैक बोर्ड चेतावनियों से पटे पड़े
स्कूल की बेंचें
फैलकर बड़ी हो गई हैं
वे अब बिठाती नहीं सुला लेती हैं
सब बच्चों के टिफिन बॉक्स
बॉटलों में बदल कर
चिमगादड़ों की तरह लटके हैं उल्टे
यहाँ जो चार्ट लगे हैं
न अनार-आम के हैं,
न गिनती – पहाड़ों के
और न ही एनिमल्स के
एक आदमी खड़ा है
कपड़े उतार कर
और एक भूत का अस्थि-पंजर है
हमें डराने के लिए
यहाँ की मैडम सफ़ेद युनिफॉर्म में घूमती हैं
वे ख़ुद ही कुछ पढ़ती हैं
लिखती हैं ख़ुद ही कुछ
और कॉपी –किताब बगल में दबाये
भागती हैं इस बच्चे से उस बच्चे तक
(हमारा होमवर्क वो ही करती होंगी -
प्यारी मैडम)
सफ़ेद-सा लबादा और सूंड-सा लॉकेट पहने
हेड मास्टर आते हैं जब
दौड़कर हमारी कॉपियाँ दिखाने पहुँच जाती हैं
हेड मास्टर हमसे गिनती पहाड़े पूछें
उसके पहले ही मैडम सारे लेसन सुना देती हैं
और हम बरी हो जाते हैं
( माँ जैसी मैडम )
तकलीफ़ इसी बात की
कि कड़वी-सड़वी दवाई
और पुट्ठों पर मोटे-मोटे सुए
यहाँ की जानलेवा सज़ा है
लेकिन एक अजीब-सी आज़ादी यहाँ
दिन भर जाने-अनजाने चेहरे चले आते
आँखों में करुणा और होठों पर
न जाने कहाँ से हँसी लिए,
हाथों में फल और बिस्कुट भी
अब तक कहाँ छुपे थे
इतना प्यार करने वाले लोग?
कितने हाथ इस वक़्त
बालू में घर बना रहे होंगे,
कितने हाथ पतंग उड़ा रहे होंगे,
कितने हाथ गेंद फेंक रहे होंगे
लेकिन एक घर,
एक पतंग,
एक गेंद
कम होगी संसार में
क्योंकि वह अभी प्लास्टर में बंद है
आज तीसरा दिन है
हाथ पर पट्टा चढ़े
आज भी इस स्कूल की घंटी नहीं बजी
शायद कल छुट्टी हो जाए