भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हण्डिया / सुकुमार चौधुरी / मीता दास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चूल्हे की आँच पर चड-चड करता पक रहा है
एक मुट्ठी चावल
लुढ़के आँसुओं के दाग सोते हुए भाई की आँखों पर।

खदबदाती हण्डिया को घेर कर
बैठे हुए हैं हम कुछ लोग
और माँ के धूसर चेहरे से हँसी ग़ायब है।

तृष्णा भरी आँखों से हम ताकते हैं
हमारी पलकें नहीं झपकतीं
गरम भात की गन्ध से उड़ जाती है दोनों आँखों की नींद
 
खदबदाती हण्डिया को घेर
इस तरह ही कटता जा रहा है मेरा शैशव।

मूल बांग्ला से अनुवाद — मीता दास