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हत्यारे की पोशाक / प्रमोद कुमार शर्मा
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अलग से कुछ नहीं होता
वही धागा वही सूत
वही के वही पंचभूत
हालांकि जिस्म के भीतर
नहीं होता दिल
जिस पर वह पहनता है सूट!
शक्ल उसकी मिलती है
लगभग आदमी से
लेकिन फिर भी
वह आदमी नहीं होता
यह प्रश्न बड़ा ही जटिल है
फिर क्योंकर मिल जाती है उसे जगह
हवाई जहाजों में
कैसे दुबक जाता है
वह गर्म लिहाफों में
दसअसल-यह समय हत्यारे के लिए
सबसे माकूल समय है
अंधेरा भी तो उसके साथ है
और उजाला भी!