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हत्यारे / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
हत्यारे
हत्यारे घूम रहे हैं
खुल्लम-खुल्ला, बड़ी शान से
अमूर्त हो रहे हैं अपराध्
और हत्यारे बरी
दुनिया का कोई कानून
उन्हें हत्यारा नहीं मानता
हत्यारों को पहनाई जा रही हैं
रंग-बिरंगी पगड़ियां
उनकी मनुहार हो रही है
जय-जयकार गूंज रही है
समूचे ब्रह्मांड में
मैं हैरान हूं
दुनिया भर में अनगिनत बच्चे
गूंगे क्यों हो रहे हैं?
1999