भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हथिया अएत पियासल हो बाबा / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हथिया अएत<ref>आयगा</ref> पियासल हो बाबा, माँगत पोखरी खुनाय<ref>खुदबाकर</ref>।
हथिया अएत मगमातल<ref>मद से माते हुए; झूमते हुए</ref> हो बाबा, माँगत बँगला छराय॥1॥
कथि लोभें आहे बाबा दूध भात खिऐलऽ<ref>खिलाया</ref>, कथि सूखे<ref>किस सुख से</ref> कैलहो<ref>किया</ref> दुलार।
केकरा<ref>किसके</ref> भरोसे बोल हारल हो बाबा, सोजन लागल दुआर॥2॥
संपति देखि बेटी दूध भात खिलैलियौ, मुँह सूखे कैलियौ दुलार।
तोहरे भरोसे बोल हारल गे बेटी, सोजन लागल दुआर॥3॥
किए ओकर<ref>उसका</ref> खैलहो हो बाबा, किए ओकर कैलहो दरबार।
पनमा ओकर खैलिऐ गे बेटी, सभा पैसी कैलिऐ दरबार॥4॥
पनमा ओकर उगलि देहो हो बाबा, फेरि लेहो<ref>लौटा लीजिए</ref> बचन अपान।
हमरा ऐसन बेटी नुकबह<ref>छिपा दीजिए</ref> हो बाबा, सोजन घूरि घर जाय॥5॥
तोड़ब अरकी<ref>‘फरकी का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref>, तोड़ब फरकी<ref>बाँस की छोटी बत्ती; लकड़ी आदि से घेरकर बनाया गया घेरा; टट्टी</ref>, तोड़ब दसो मुख केबार।
बीचहिं नगर पैसी नटुआ नचायब, लै जैबै गौरी बियाहि॥6॥

शब्दार्थ
<references/>