हथेलियों में प्रार्थना / कुमार कृष्ण
जब तमाम बच्चे
जादूगर के झूठ को सच समझने लगे
मैं हथेलियों में प्रार्थना लिए कहाँ जाऊँ
दोस्तो सच का मुंह टेढ़ा है
दौड़ रहे हैं झूठ के पाँव इस पगड़ी वाली धरती पर
जगह-जगह बिक रहा है अलादीन का चिराग
चलो चलें दादा-दादी का सच ढूंढ़ने
शायद उन्होंने किसी कम्बल में छुपा कर रखा हो
ढूँढ भी लिया तो-
कैसे बचाएंगे उसे जादूगर की तलवार से
जादूगर जानता है-
मनुष्यों को टुकड़ों में काटना और जोड़ना
किसी काम का नहीं दादा-दादी का बूढ़ा सच
हमारा हंसना-रोना, खाना-पीना
पहनना-ओढ़ना, सोना-जागना
सभी कुछ तय करती है कोलम्बस की दुनिया
तभी तो बच्चों के सपनों में आते हैं
पंख वाले घोड़े हवा में उड़ते आदमी
जादूगर की पगड़ी
बच्चों के सपनों में नहीं आते
दादा-दादी, अम्मा-बापू
उनके सपनों में नहीं आती
चिड़िया कि चोंच में छुपी परिवार की भूख
नहीं आती नंगे पांव चलते सपनों की आवाज़
वे नहीं जानते
गर्म होता है कहाँ आँख का पानी
गिरने लगता है हथेलियों पर चुपचाप अपने आप
दोस्तो अगर कभी मिल भी जाए दादा-दादी का सच
तो मत उतारना उसकी पूरी तस्वीर किसी काग़ज़ पर
बेदद खतरनाक है पूरा सच लिखना
तुम बनाना
सिर कटी चिड़िया कि सुनहरे पंखों वाली तस्वीर
टांग देना किसी बिजली के खम्भे के साथ
देखते रहें आते-जाते लोग
उसकी अंतिम सांस तक।