Last modified on 20 जून 2018, at 03:16

हथेलियों में मुँह / थीक न्हात हन / सौरभ राय

मैंने हथेलियों से अपना मुँह ढक रखा है
अरे नहीं ! मैं रो नहीं रहा।

मैंने हथेलियों से अपना मुँह ढक रखा है
कि मेरा एकान्त शेष रहे
मेरे दोनों हाथ बचा रहे हैं
सहेज रहे हैं
रोक रहे हैं
मेरी आत्मा को मुझे त्यागने से
जो जल रही है
क्रोध की आग में।
एक दूसरे की तलाश

मैं तलाश रहा हूँ तुम्हें
हे तथागत !

बचपन से ही तलाश रहा हूँ
अपनी पहली साँस में सुनी थी तुम्हारी पुकार
और तबसे तुम्हारी तलाश में हूँ
चला हूँ दुर्गम रास्तों पर
सही हैं ठोकरें
टकराया हूँ निराशा, भय, क्रोध से
गुज़रा हूँ गहन, दुर्गम जंगलों से
पार किए हैं अथाह सागर
लाँघे हैं पहाड़, और लड़ा हूँ गरजते मेघों से
कितनी बार मरा हूँ; और हुआ हूँ अकेला
प्राचीन रेगिस्तानों की धूसर रेत में
मेरे ह्रदय में गहरी दबी आँसू की बून्दें
कंकड़ बन चुकी हैं।

हे तथागत, मैंने सपनें में भी ओस की बून्दों को पिया है
जो टिमटिमाती हैं दूर आकाशगँगा की रोशनी में।
मेरे पैरों के निशान दुर्गम ग्रहों पर मिले हैं
मैं चिल्लाया हूँ पाताल की गहराइयों से
क्षुब्ध, अतृप्त,
कई जन्मों तक
मैं तरसा हूँ तुमसे मिलने को
बन्द आँखों के मौन में
देखा है तुम्हें विचरते हुए

तुम और मैं
एक हैं
हमारे बीच की दूरी केवल उतनी जितना मेरे मन में दबा सन्देह;
कल अकेले चलते हुए
मैंने देखा था सड़क पर बिखरे पत्तों को एक साथ उड़ते हुए
और किवाड़ से झाँकता दुर्दान्त चाँद
अचानक एक पुराने दोस्त की याद दिलाने लगा
और तारे सुनाते रहे तुम्हारे गीत
रात भर बरसती रही करुणा
बिजली की हलकी गर्जनाओं के बीच।
फिर तूफ़ान उठा
मानों धरती और आकाश के बीच लड़ाई छिड़ गई हो;
और आख़िर में जब तूफ़ान रुका, बादल छँटे
और अपने एकान्त में झूमता चान्द लौटा
धरती और आकाश को शान्त करता हुआ
ठीक उसी वक़्त आईने में झांकते हुए
मैंने देखा था खुदको
और देखा था तुम्हें मुस्कुराते हुए, हे तथागत !

चाँद ने मुझे लौटाया है वो सब
जो मैंने कभी खो दिया था
अब न खोने का डर है, न पाने की इच्छा
आज हर फूल, पत्ता, धूल का हर कण मझे जानता है।
जिधर मुड़ता हूँ, तुम
अजन्मे, अमर्त्य तुम
पर्वतों में अडिग, शान्त, मुस्कुराते हुए
ध्यान की मुद्रा में बैठे
मैंने आईने में, और खिड़की से, और दीवारों पर देखा है तुम्हें
जब मिला हूँ तुमसे, हे तथागत !
जैसे मिला हूँ अपने आप से
देखो, हम कितने एक हैं!

देखो गहरा नीला आकाश
क्षितिज के रंग में बर्फ़ के मनोरम पर्वत
और गुनगुना हल्का सूरज
तुम्हारी करुणा के प्रतीक हैं
तुम तथागत, मेरे पहले प्रेम हो
चिरनवीन, निर्मल प्रेम
तुम प्राण हो, प्राणियों में बहते हुए
तुम्हारे झरने के आर-पार देखते हुए
मैंने पाई है आन्तरिक शान्ति, और देखने की दृढ़ता भी
मेरे मन की धार आज तुम्हारी नदी में जा मिली है
सागर, मेघ, बारिश बन
अब मैं बाँटता हूँ तुम्हारी करुणा
अनन्त काल तक।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सौरभ राय