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हथेली / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
विषाद से भीगे चेहरे पर
रखना चाहता हूँ
हथेली
पराजय से झुके हुए कँधों पर
रखना चाहता हूँ
हथेली
चाहता हूँ चट्टान की तरह
मेरी हथेली
रोक ले
अँधेरे को
आँखों में समाने से पहले
चाहता हूँ हथेली पकड़कर
डूबने वाला
किनारे तक पहुँच जाए
तितली की तरह सुख को
रखना चाहता हूँ
हथेली में बंद करके
पँखुड़ियों की तरह टीस को
हथेली पर फैलाकर
महसूस करना चाहता हूँ
अपनी धरती को रखकर
अपनी हथेली पर
मैं मग्न रह सकता हूँ
छूकर देखो इसे
हथेली नहीं
मेरा हृदय है ।