हद्दों को पार न करती तो और क्या करती
अना पे वार न करती तो और क्या करती
नहीं था दुनिया में कोई भी चाहने वाला
मैं खुद से प्यार न करती तो और क्या करती
बड़े ही शौक़ से खायी थी उसने सर की कसम
मैं ऐतबार न करती तो और क्या करती
मुझे जो घर से मिले है उन्ही उसूलों पर
ये जां_निसार न करती तो और क्या करती
किस ऐतबार से उसने कहा था आऊंगा
मैं इंतज़ार न करती तो और क्या करती
सिया फ़िराक़ में है लोग बस कमी ढूंढे
कलम को धार न करती तो और क्या करती