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हद्दों को पार न करती तो और क्या करती / सिया सचदेव

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हद्दों को पार न करती तो और क्या करती
अना पे वार न करती तो और क्या करती

नहीं था दुनिया में कोई भी चाहने वाला
मैं खुद से प्यार न करती तो और क्या करती

बड़े ही शौक़ से खायी थी उसने सर की कसम
मैं ऐतबार न करती तो और क्या करती

मुझे जो घर से मिले है उन्ही उसूलों पर
ये जां_निसार न करती तो और क्या करती

किस ऐतबार से उसने कहा था आऊंगा
मैं इंतज़ार न करती तो और क्या करती

सिया फ़िराक़ में है लोग बस कमी ढूंढे
कलम को धार न करती तो और क्या करती