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हद से बढ़कर दर्द दवा हो जाता है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
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हद से बढ़कर दर्द दवा हो जाता है
सहने से हर रंज हवा हो जाता है
मीठी वाणी में कुद ऐसा जादू है
हर बेगाना भी अपना हो जाता है
आँसू जब कह देते मन की मौन व्यथा
आपस का सब दूर गिला हो जाता है
नज़र इनायत की जिस पर होती उसकी
उठ कर वह अदना, आला हो जाता है
सुधियाँ जब से बेचैन बनाती हों उस दम
रो लेने से मन हलका हो जाता है
ख़िदमत होती जहाँ ख़ुदा के बन्दों की
वही ख़ुदा का घर काबा हो जाता है
आता जिनको नहीं नाचना है, उनको
सीधा आंगन भी टेढ़ा हो जाता है
मिला नहीं सुन्दरता का वरदान, उन्हें
उजला दर्पण भी मैला हो जाता है
काँटो-सा बर्ताव फूल जब करते हैं
उल्फ़त का दामन गीला हो जाता है
होती है तब ग़ज़ज, सामने दर्द ‘मधुप’
बनकर जब दीवार खड़ा हो जाता है।