हनुमत स्तुति (राग सारंग)
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जके गति है हनुमान की।
 
ताकी पैज पुजि आई, यह रेखा कुलिस पषानकी।1।
 
अघटित-घटन, सुघट-बिघटन, ऐसी बिरूदावलि नहिं आनकी।
 
सुमिरत संकट-सोच-बिमोचन, मूरति मोद-निधानकी।2।
 
तापर सानुकूल गिरिजा, हर, लषन, राम अरू जानकी।
 
तुलसी कपिकी कृपा-बिलोकनि, खानि सकल कल्यानकी।3।
(जारी)