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हफ़्ता / हरजेन्द्र चौधरी
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पहला पहले ही भरा बैठा था सुस्ती से
उसने दूसरे को हुक़्म दिया
दूसरे ने टाल दिया तीसरे पर
तीसरे ने चाहा चौथे को दुखी करना
चौथा अकड़ा- मैं ही क्यों
पाँचवे पर छोड़कर निकल गया चाय पीने
पाँचवा जल्दी जाने के चक्कर में था
अँगूठा दिखा गया काम को
यूँ पूरे हुए पाँच सरकारी दिन
देश को उंगल करते हुए
केवल निजी काम निकाले लोगों ने
हफ़्ते के सातों दिन...
रचनाकाल : 1999, नई दिल्ली