भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हफ़्तों उनसे मिले हो गए / अल्हड़ बीकानेरी
Kavita Kosh से
हफ़्तों उनसे मिले हो गए
विरह में पिलपिले हो गए।
सदके जूड़ों की ऊँचाईयाँ
सर कई मंजिलें हो गए।
डाकिए से ‘लव’ उनका हुआ
खत हमारे ‘डिले’ हो गए।
परसों शादी हुई, कल तलाक
क्या अजब सिलसिले हो गए।
उनके वादों के ऊँचे महल
क्या हवाई किले हो गए।
नौकरी रेडियो की मिली
गीत उनके ‘रिले’ हो गए।
हाशिये पर छपी जब ग़ज़ल
दूर शिकवे-गिले हो गए।