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हमको इस दुनिया में रहना ही नहीं आया / अशोक रावत

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हमको इस दुनिया में रहना ही नहीं आया,
दिल में तो बहुत कुछ था कहना ही नहीं आया.

एक प्यास थी मन में जो बहती रही जीवन भर,
एक दरिया था जिसको बहना ही नहीं आया.

तेरी आस को थामे हम चलते तो चले आये,
तेरा हाथ मुसीबत में गहना ही नहीं आया.

ऐसा भी नहीं था ग़म हमें रास नहीं आये,
सहने का जुनूँ तो था सहना ही नहीं आया.

वो आग जलाती क्या नफरत के अँधेरों को,
जिस आग को मौके पर दहना ही नहीं आया.

बादल की तरह उमड़े, जब अश्क़ मेरे उमड़े,
पलकों में ही सूख गये, बहना ही नहीं आया.