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हमको तुम्हारी बात से इंकार नहीं है / फ़िरदौस ख़ान
Kavita Kosh से
हमको तुम्हारी बात से इंकार नहीं है
तुमको हमारी हाँ में भी इक़रार नहीं है
रातों को भी जंगल में भटकते सदा जुगनू
मानिंद मेरे उनका भी घरबार नहीं है
मजबूरियों ने बेड़ियाँ डाली हैं बरगना
तुम जैसा मेरा मोनिसो-गमख्वार नहीं है
जो काम ज़िंदगी के उसूलों को ज़रर दे
एक बार नहीं, उससे तो सौ बार नहीं है
वह क़त्ल तो करते हैं ख़ुदा जाने किस तरह
हाथों में जिनके ख़ंजरो-तलवार नहीं है
'फ़िरदौस' तेरी कितनी अजब कश्ती-ए-हयात
चल तो रही है, मगर कोई पतवार नहीं है