भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमको परहेज़ है साहब कहाँ बदलने से / विनय कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमको परहेज़ है साहब कहाँ बदलने से।
कुछ न बदलेगा मगर बस यहाँ बदलने से।

बात कोई नहीं करता वहाँ बदलने की
हम बदल सकते है सचमुच जहाँ बदलने से।

न दिल, न ज़ज्बा, न लहजा, न नजि़रया न नज़र
कुछ बदलता नहीं है चेहरा बदलने से।

सर झुकाने के तरीके़ के सिवा क्या बदला
दिल बदलता नहीं है देवता बदलने से।

वो उसे तोड़ता नहीं तो खुदखुशी करता
दाग़ दिखने लगा था आईना बदलने से।

आपका लम्स था मरहम की तरह ज़ख्मों पर
लम्स तेजाब हुआ फ़ल्सफ़ा बदलने से।