भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमको ये जहां-दादा बुज़ुर्गों ने कहा / रमेश तन्हा
Kavita Kosh से
हमको ये जहां-दादा बुज़ुर्गों ने कहा
पैसों का नहीं गुरुर अच्छा होता
हमने मासूमियत से पूछा फिर क्यों
हर कोई पुकारता है पैसा पैसा