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हमको वह बहला रहे हैं / कैलाश झा 'किंकर'

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हमको वह बहला रहे हैं
फिर भी हम घबरा रहे हैं।

आपके बिन गाँव सूना
बोलिए कब आ रहे हैं।

आपके ही संग हैं हम
कब, कहाँ तन्हा रहे हैं।

है ख़ुशी बच्चे हमारे
चैन, सुख सब पा रहे हैं।

प्रेम के संवाद से सब
फूल खिलते जा रहे हैं।

बोलियों में हो मधुरता
कब से हम बतला रहे हैं।

भाइयों पर स्नेह रखकर
गीत माँ के गा रहे हैं।

दूर जो बच्चे हमारे
ज़ख़्म को सहला रहे हैं।