हमको समझौतों पर / हरीश भादानी
हमको
समझौतों पर
जीवन जी लेने का कहने वालो !
सुन लो,
हम अपनी चौखट से बोल रहे हैं;
हम उस जीवन की धड़कन हैं
जो पत्थर तोड़ा करती है,
हम उस जीवन की सरगम हैं
जो सांसें धोंका करती है,
हम उस जीवन के दुलार हैं
जो कुन्दनिया तन से रिसता
खारा दूध पिया करता है,
लाज हमी हैं उस जीवन की
जिसको केवल मन की ओट मिला करती है,
हम उस जीवन की घर-गृहस्थी
जो आवारा भूख-प्यास को
आंगन में बांधे रखती है,
दर्द हमीं हैं उस जीवन के
जो लोरी सुन
फुटपाथी मखमल पर सो जाता है
सोते में बहका करता है,
हम उस जीवन की भाषा हैं
जिसके छन्द बुने जाते मरघट में,
गीत हमीं हैं उस जीवन के
जिसे काफ़िले परभाती कहते हैं,
हम उस जीवन की अभिलाषा
जो सपनों के बदले
सावन नहीं खरीदा करती,
हम वह जिजीविषा हैं
जो जीने के लिए
कभी ईमान नहीं बेचा करती है;
हमको
समझौती-चुम्बक दिखलाने वालो !
हम जीवन की ऐसी परिभाषा हैं
जिसको पढ़ने
तुमको अपनी आँख भिगोनी होगी
और समझने
लम्बी उम्र लगानी होगी;
ओ, समझौतावादी लोगों !
ये सुविधाई-न्यौते
ये सुखछापी सिक्के
बौने हैं, हल्के हैं-
उस चौखट पर
जिस भारीपन से, ऊँचे मन से
आयाम हमारे बोल रहे हैं !