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हमनें यूँ ज़िन्दगानी का नक्शा बदल लिया / मनोज अहसास

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हमनें यूँ ज़िन्दगानी का नक्शा बदल लिया
देखा तुझे जो दूर से रस्ता बदल लिया

तुमने भी अपने आप को कितना बदल लिया
नज़रों की ज़द में आते ही चहरा बदल लिया

जब इस सराय फानी का आया समझ में सच
हमनें भरी दुपहर में कमरा बदल लिया

दादी की जलती उंगलियों का दर्द अब नहीं
हामिद ने इक खिलौने से चिमटा बदल लिया

दीवानगी भी ,शाइरी भी,दिल भी, शहर भी
तुमको भुलाने के लिए क्या क्या बदल लिया

कांपी तमाम रात यूँ मुफ़लिस के जिस्म में
बेज़ार होके रूह ने चोला बदल लिया

'अहसास' उसने हमको भुलाया है इस तरह
मिट्टी के इक मकान में घर था,बदल लिया