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हमनें सिक्के उछाल रख्खें हैं / आकिब जावेद
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हमने सिक्के उछाल रख्खे हैं
वो सनम दिल निकाल रख्खे हैं॥
तेरी बातो पर था यकीं मुझको
गुमाँ क्या-क्या जो पाल रख्खे हैं॥
पैर में तेरे आज है छाले
दर्द हमने ही पाल रख्खे हैं॥
संगमरमर की तेरी मूरत ने
पहलू क्या-क्या निकाल रख्खे हैं॥
देख सूरत ये आइना हंसता
सपने कितने संभाल रख्खे हैं॥
जब हवाएँ ख़िलाफ़ है फिर भी
कस्ती तूफाँ में डाल रख्खे हैं॥
दोस्त तलवार थामे है आकिब'
हम तो हाथो में ढ़ाल रख्खे हैं॥