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हमने कोई गीत नहीं गाया / श्याम निर्मम
Kavita Kosh से
नए साल में
हमने कोई गीत नहीं गाया,
जाने किन-किन विपदाओं का घिरा रहा साया !
रस्ते
चलते-चलते अपना रस्ता भूल गए,
मंज़िल तक कैसे पहुँचेंगे टूट उसूल गए ।
शिखरों की ऊँचाई नापे —
थकी-थकी काया !
असफलता का
बोझ मनों सा मन पर भारी है,
इच्छाओं पर बेरहमी की चलती आरी है ।
अपनेपन को दर्शाने का
भाव नहीं भाया !
आशा औ‘
विश्वासों में ये जीवन बीत गया,
सपनों का घट भरा-भरा पर यूँ ही रीत गया ।
धूप कड़ी पर चलना कोसों
दिखे नहीं छाया !