भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमने ख़ुद को कभी बेज़ार नहीं होने दिया / मधु 'मधुमन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमने ख़ुद को कभी बेज़ार नहीं होने दिया
अपनी उम्मीद को मिस्मार नहीं होने दिया

अपने जज़्बात का इज़हार नहीं होने दिया
ज़िंदगी को कभी अख़बार नहीं होने दिया

मुश्किलें लाख मिलीं राह में हमको लेकिन
अपने किरदार को लाचार नहीं होने दिया

हमने नुक़सान उठा कर भी निभाए रिश्ते
प्यार के जज़्बे को व्यापार नहीं होने दिया

हम जो बिस्तर पर पड़े कौन सँभालेगा हमें
बस इसी फ़िक्र ने बीमार नहीं होने दिया

अपने बच्चों को सहूलत की हर इक शय देकर
हमने ख़ुद उनको समझदार नहीं होने दिया

ख़्वाब देखा था कभी हमने भी ‘मधुमन‘ कोई
पर मुक़द्दर ने वह साकार नहीं होने दिया