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हमने तुम्हारी बेरुखी संग ज़िंदगी / तारा सिंह
Kavita Kosh से
हमने तुम्हारी बेरुखी संग जिंदगी गुजार दी
तुम हमारी एक रात की बेरुखी पे खफ़ा हो गये
दर्दे-बयां उस अंधेरी रात के शबिस्ताँ1 की कैसे करें
जो दिल की गरज मिटते ही तुम,हमसे जुदा हो गये
तमाम-बज़्म2 मुश्ताक3 हो गई, इस अफ़साने को सुनकर
जो तुमने कहा, क्या फ़तीहा4 पढ़ने वाले खुदा हो गये
दर्दे–सर हमारा ता-उम्र, तुम्हारी जुल्फ़ के सौदे में रहा
मगर तुम्हारा दिल तड़पा,सनम तुम क्या थे,क्या हो गये
जब तक तुम हम से मिले न थे, जिंदगी आसान थी
आफ़त तो तब बनी , जब तुम मिलके जुदा हो गये
1. शयन-गृह 2.पूरी दुनिया 3.उत्सुक 4.प्रार्थना