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हमने तो नहीं जाना तिनके का सहारा भी / नज़ीर बनारसी
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हमने तो नहीं जाना तिनके का सहारा भी
तूफाँ ने डुबोया था तूफाँ ने उभारा भी
है एक जमाने पर एहसान हमारा भी
बिगड़े जो मुहब्बत में कितनों को सँवारा भी
जब वो थे रात अपनी हर तरह से रोशन थी
चमके थे अगर जुगनू टूटा था सितारा भी!
फिर ताजा करें चलकर ईमाने मुहब्बत को
इक बार जिसे देखा देख आयें दुबारा भी
खुद आऊँगा साहिल तक आवाज न दे कोई
तौहीने जवानी है तिनके का सहारा भी
उभरे कोई या डूबे इक लहर तो पैदा हो
खामोश है तूफाँ भी गुमसुम है किनारा भी
जो अपने उभरने की करता नहीं खुद कोशिश
उस डूबने वाले पर हँसता है किनारा भी
कुछ हाल सुना उनका कुछ हाल कहा अपना
कुछ बोझ लिया सर पर कुछ सर से उतारा भी
चेहरे पे ’नजीर’ उनके है रंगे शिकस्त अब तक
जीती हुई बाज़ी को मैं जान के हारा भी