भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमने भूख का यहां ऐसा आलम देखा / सांवर दइया
Kavita Kosh से
हमने भूख का यहां ऐसा आलम देखा।
खाली पेट पर पड़ता पांव जालिम देखा।
रात के घर रची जब दावत बड़े ठाठ से,
उसमें हमने सूरज को भी शामिल देखा।
हमारे घरों तक यह हवा भी नहीं आती,
उन सभी दयाबतदारों से हां, मिल देखा।
बस यूं ही ज़रा टटोल लीं आपकी जेबें,
लेना किसे, हमने तो आपका दिल देखा।
हर सांस कटती नहीं मामूली वारों से,
हमने चाकू देखा, चाकू का फल देखा।