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हमने मन के द्वारे द्वारे वंदनवार सजा रक्खे हैं / सर्वेश अस्थाना

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हमने मन के द्वारे द्वारे वंदनवार सजा रक्खे हैं, तुम आ जाओ द्वार पूज कर तुमको भीतर ले आएंगे।
समय पुरोहित साइत देखता ग्रह नक्षत्र सब रूठे रूठे,
सप्तम में शनि आ बैठा है गुरु सूर्य सब टूटे टूटे।
राहु केतु नाराज़ खड़े हैं बुद्ध चंद्रमा भाग रहे हैं,
मात्र शुक्र के साथ है मंगल अद्भुत हैं संयोग अनूठे।।
किन्तु तुम्हे आना ही होगा गौरी कलश बिठा रक्खे हैं,उनका ले आशीष अमंगल सारे मंगल कर लाएंगे।
हमने मन के द्वारे द्वारे वंदनवार सजा रक्खे हैं तुम आ जाओ द्वार पूज कर तुमको भीतर ले आएंगे।।

आओ मन की सात भावरें भीतर ही भीतर ले डालें,
प्रेम देवता के आंगन में साक्ष्य हेतु ऋतुराज बुला लें।
मन से मन की गांठ बंधेगी होगा परम नेह का बंधन,
विश्वासों की दिव्य वेदिका के हम फेरे साथ लगा लें।
पावन योग हृदय का होगा सारे देव बुला रक्खे हैं उनके आशीषों की वर्षा से मन प्राण भीग जाएंगे।
हमने मन के द्वारे द्वारे वंदनवार सजा रक्खे हैं,तुम आ जाओ द्वार पूज कर तुमको भीतर ले आएंगे।।

फेरे लेकर मंडप से हम साथ साथ बाहर भी आयें,
साथ स्वांस की सरगम में हम सारे राग साथ में गायें।
चाहे दुख हो या कोई सुख दोनो मिलकर उसे जियेंगे,
अगर बुलावा भी आया तो दोनो साथ साथ ही जायें।
जाना है उस पार केवटों ने मझधार उठा रक्खे हैं,गंगा जमुना सा संगम बन सारे लोक जीत जाएंगे।
मन के द्वारे द्वारे हमने वंदनवार सजा रक्खे हैं,तुम आ जाओ द्वार पूजकर तुमको भीतर ले आएंगे।।