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हमने सपनों में देखी हैं वैभव की ऊंची दीवारें / जतिंदर शारदा

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हमने सपनों में देखी हैं वैभव की ऊंची दीवारें
लेकिन जीवन में मिलती हैं जर्जर खंडित-सी दीवारें

कितनी देर रहेंगी क़ायम खंडर की अटकी दीवारें
गिरते गिरते गिर जाएंगी ये गिरने वाली दीवारें

जब तक बाक़ी हैं धरती पर मंदिर मस्जिद की दीवारें
इन्सानों के बीच रहेंगी न जाने कितनी दीवारें

जब दो प्रेमी जीवन पथ पर बढ़ने का साहस करते हैं
अकसर आड़े आ जाती हैं सोने चांदी की दीवारें

जीवन के कटु संघर्षों से जब भी मैं पलायन करता हूँ
पागल मन रचने लगता है अनुपम सतरंगी दीवारें

इन भूमिगत अवशेषों में युग-युग का इतिहास मिलेगा
शत शत गाथाएँ कहती हैं इन अवशेषों की दीवारें

साहस के सन्मुख आ जाएँ चाहे विपदाओं के गिरिवर
पल भर में ही ढह जाते हैं जैसे रेतीली दीवारें

पीड़ा की भाषा को केवल कोई घायल ही समझेगा
मूक भाव से देख रही हैं व्यथा कथा कहती दीवारें

जिनको मैं अपना कहता था आज बने हैं मेरे दुश्मन
पक्के सम्बंधों की क्यों कर होती हैं कच्ची दीवारें

मुझे गिराने वाले अकसर मेरे सन्मुख गिर जाते हैं
कायरता क्या ढा पाएगी सुदृढ़ साहस की दीवारें