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हमने सब शेर में सँवारे थे / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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हमने सब शेर में सँवारे थे
हमसे जितने सुख़न1 तुम्हारे थे

रंगों ख़ुश्बू के, हुस्नो-ख़ूबी के
तुमसे थे जितने इस्तिआरे2 थे

तेरे क़ौलो-क़रार3 से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे

जब वो लालो-गुहर4 हिसाब किए
जो तरे ग़म ने दिल पे वारे थे

मेरे दामन में आ गिरे सारे
जितने तश्ते-फ़लक5 में तारे थे

उम्रे-जाविदे6 की दुआ करते थे
‘फ़ैज़’ इतने वो कब हमारे थे

1. संवाद
2. रूपक
3. वचन-स्वीकृति
4. हीरे-मोती
5. आसमान की तश्तरी
6. उम्रदराज़ होने