भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमने सब शेर में सँवारे थे / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
हमने सब शेर में सँवारे थे
हमसे जितने सुख़न1 तुम्हारे थे
रंगों ख़ुश्बू के, हुस्नो-ख़ूबी के
तुमसे थे जितने इस्तिआरे2 थे
तेरे क़ौलो-क़रार3 से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे
जब वो लालो-गुहर4 हिसाब किए
जो तरे ग़म ने दिल पे वारे थे
मेरे दामन में आ गिरे सारे
जितने तश्ते-फ़लक5 में तारे थे
उम्रे-जाविदे6 की दुआ करते थे
‘फ़ैज़’ इतने वो कब हमारे थे
1. संवाद
2. रूपक
3. वचन-स्वीकृति
4. हीरे-मोती
5. आसमान की तश्तरी
6. उम्रदराज़ होने