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हमने समन्दरों को नहीं देखा गौर से / शैलेश ज़ैदी
Kavita Kosh से
हमने समन्दरों को नहीं देखा गौर से.
वो भी गुज़र रहे हैं मुसीबत के दौर से.
ले जा रहे हैं लोग दरख्तों को काटकर
जंगल तबाह हो गए सब जुल्मो-जौर से.
लाज़िम है अब, कि गैरों से रक्खें तअल्लुकात,
अपनों ने रिश्ते जोड़ लिए और और से.
करते हैं लोग आज कनायों में बात-चीत,
आजिज़ मैं आ चुका हूँ ज़माने के तौर से.