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हमने सीखा ही नहीं राज़ सँवर जाने का / रंजना वर्मा
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हमने सीखा ही नहीं राज़ सँवर जाने का
डूब जाने का कभी पार उतर जाने का
देख लो रोज़ नहीं लाल कमल हैं खिलते
हर कली को न हुनर आये निखर जाने का
लड़खड़ाएं तो कोई हाथ न थामें बढ़ के
कोई वादा तो करे गिर के उबर जाने का
ये बुरा वक्त भी है पाँव बना अंगद का
नाम लेता ही नहीं आ के गुज़र जाने का
जिंदगी खेल समझ के ही गुजारी तुम ने
आज तो वादा करो तुम भी सुधर जाने का
चाँद आता है चला रोज़ किसी मकसद से
रोग उसको भी लगा भोर से डर जाने का
मौत का यूँ तो मुक़र्रर है कोई दिन फिर भी
अश्क़ का होता नसीबा है बिखर जाने का